पुलिस इस बात पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है कि क्या इन मौतों का सीधा संबंध डॉक्टर की कथित लापरवाही या गलत उपचार से था। इसके लिए, पीड़ितों के मेडिकल रिकॉर्ड की बारीकी से जांच की जाएगी और यदि आवश्यक हुआ तो विशेषज्ञों की राय भी ली जाएगी। पुलिस अधीक्षक ने यह भी संकेत दिया है कि जांच के दौरान आरोपी नरेंद्र जॉन केन का पॉलीग्राफ टेस्ट भी कराया जा सकता है। पॉलीग्राफ टेस्ट, जिसे आमतौर पर ‘लाई डिटेक्टर’ टेस्ट के रूप में जाना जाता है, का उपयोग जांचकर्ताओं द्वारा सच्चाई का पता लगाने और महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है। हालांकि, भारत में पॉलीग्राफ टेस्ट के निष्कर्ष अदालतों में सीधे तौर पर स्वीकार्य सबूत नहीं होते हैं, लेकिन यह जांच की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
आरोपी के पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में जो जानकारी सामने आई है, वह भी इस मामले में एक पेचीदा पहलू जोड़ती है। परिजनों के अनुसार, नरेंद्र बचपन से ही काफी होशियार था, लेकिन उनके आपसी संबंध अच्छे नहीं थे। यह जानकारी आरोपी के व्यक्तित्व और उसके द्वारा किए गए कथित अपराधों की पृष्ठभूमि को समझने में मदद कर सकती है। पुलिस ने आरोपी के विभिन्न ठिकानों पर छापेमारी की है और वहां से कई महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद किए हैं, जिनमें आधार कार्ड और अन्य सामान शामिल हैं। इन दस्तावेजों की जांच से आरोपी की पहचान और उसके द्वारा इस्तेमाल किए गए विभिन्न नामों (नरेंद्र यादव उर्फ विक्रमादित्य यादव ऐन जान केन) के बारे में अधिक जानकारी मिल सकती है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पुलिस को आशंका है कि इस मामले में और भी लोगों के नाम सामने आ सकते हैं। इसका अर्थ है कि जांच का दायरा बढ़ सकता है और अस्पताल के अन्य कर्मचारियों या अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध हो सकती है, जिन्होंने कथित तौर पर बिना वैध डिग्री वाले व्यक्ति को इतने महत्वपूर्ण पद पर काम करने दिया। यह अस्पताल के भर्ती प्रक्रियाओं और निरीक्षण तंत्र पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।
इसके अतिरिक्त, पुलिस को अभी आरोपी की विदेशी डिग्रियों की प्रामाणिकता की जांच करनी है। यदि यह डिग्रियां फर्जी पाई जाती हैं, तो यह न केवल धोखाधड़ी का एक और गंभीर मामला होगा, बल्कि यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि आरोपी ने जानबूझकर लोगों के जीवन को खतरे में डाला। इस पूरी घटना ने दमोह के मिशन हॉस्पिटल की प्रतिष्ठा को गहरा आघात पहुंचाया है और पीड़ितों के परिवारों में शोक और आक्रोश का माहौल है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पुलिस की विशेष जांच दल इस जटिल मामले की तह तक कैसे पहुंचती है और दोषियों को कानून के कटघरे में खड़ा करती है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। यह मामला चिकित्सा संस्थानों में जवाबदेही और पारदर्शिता की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है। प्रश्न अभी यह बनते हैं कि जिला शासकीय अधिकारी कम है जो ने इस डॉक्टर के डॉक्यूमेंट चेक पहले क्यों नहीं किया यह सब मामला बिगड़ डेढ़ माह से चल रहा था बाल कल्याण आयोग के अध्यक्ष प्रियंका कानून को और जिले के बाल कल्याण सदस्य दीपक तिवारी के द्वारा पहल की गई तब जाकर प्रशासन क्यों जाएगा l अगली खबर में आपसे जल्दी मिलेंगे और रूबरू होंगे क्योंकि पिक्चर अभी बाकी है l