दमोह के ग्राम जुझार घाट में दुर्भाग्यपूर्ण घटना है सोचिए, किसान मंगल लोधी ने पूरे छह महीने तक अपनी फसल को बड़े जतन से पाला होगा। खाद, पानी और मौसम की मार सहते हुए, उन्होंने उम्मीद लगाई होगी कि इस बार अच्छी पैदावार होगी और उनके परिवार का भरण-पोषण ठीक से हो पाएगा। उनकी मेहनत और उम्मीदें उस आग में पल भर में खाक हो गईं, जो 11kv लाइन के फॉल्ट के कारण लगी।
आधा एकड़ खेत, भले ही सुनने में छोटा लगे, लेकिन एक छोटे किसान के लिए यह बहुत मायने रखता है। इस खेत से उन्हें कम से कम 10 से 15 क्विंटल गेहूं मिलने की उम्मीद होगी, जिसकी बाजार में कीमत लगभग 20,000 से 30,000 रुपये तक हो सकती है। यह रकम उनके परिवार की कई जरूरतों को पूरा कर सकती थी, जैसे बच्चों की शिक्षा, घर का खर्च या फिर आगे की खेती के लिए बीज और खाद की व्यवस्था।
अब, फसल जल जाने के कारण, मंगल लोधी के सामने कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। सबसे पहले तो उनके परिवार के लिए भोजन का संकट होगा। दूसरा, अगली फसल के लिए उनके पास बीज और खाद खरीदने के लिए पैसे नहीं होंगे। तीसरा, उन्हें इस नुकसान से उबरने में काफी समय लग जाएगा।
इस तरह की घटनाएं अक्सर किसानों के लिए एक बड़ा झटका होती हैं, खासकर उन छोटे किसानों के लिए जिनके पास कोई और आय का साधन नहीं होता। प्राकृतिक आपदाएं या इस तरह के हादसे उन्हें गरीबी के और गहरे दलदल में धकेल सकते हैं। सरकार और स्थानीय प्रशासन को ऐसे मामलों में तुरंत सहायता प्रदान करनी चाहिए, ताकि किसानों को कुछ राहत मिल सके और वे दोबारा अपनी जीविका शुरू कर सकें। मुआवजे के साथ-साथ उन्हें अगली फसल के लिए आर्थिक और तकनीकी सहायता भी मिलनी चाहिए। यह न केवल मंगल लोधी जैसे पीड़ित किसानों के लिए जरूरी है, बल्कि कृषि क्षेत्र को भी स्थिर रखने के लिए आवश्यक है।
