बीना के ग्राम पराशरी में आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत महापुराण कथा, वास्तव में एक ऐसा आध्यात्मिक यज्ञ था जिसने श्रोताओं के मन और आत्मा को गहराई से स्पर्श किया वृन्दावन की पवित्र भूमि से पधारे परम श्रद्धेय पं. घनश्याम मिश्रा जी महाराज ने अपनी मधुर वाणी और भक्तिमय प्रस्तुति से कथा को एक जीवंत अनुभव बना दिया। छह दिनों तक चली इस अमृत वर्षा में, जहाँ ज्ञान और भक्ति का अद्भुत संगम हुआ, आचार्य पं. श्री राहुल तिवारी जी करौदा ने कुशल मार्गदर्शन प्रदान किया, और यजमान श्री करोड़ी लाल कुर्मी ने इस पवित्र कार्य के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा समर्पित की।
कथा के केंद्र में भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओ का वर्णन व्यास जी महाराज ने अत्यंत भावपूर्ण ढंग से किया। महारास लीला, जो शरद पूर्णिमा की उज्ज्वल रात्रि में वृन्दावन के रमणीय वनों में घटित हुई, केवल एक नृत्य नहीं बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है। इस अलौकिक नृत्य में, भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी असंख्य गोपियों के साथ एक साथ नृत्य किया, जबकि प्रत्येक गोपी ने यह अनुभव किया कि कृष्ण केवल उन्हीं के साथ हैं। यह लीला अहंकार को त्यागकर पूर्ण समर्पण के भाव को दर्शाती है, जहाँ भक्त अपने आराध्य के प्रेम में पूरी तरह से लीन हो जाता है। इस प्रसंग को सुनकर, भक्तों के हृदय प्रेम की उस गहराई में उतरे होंगे जहाँ लौकिक और अलौकिक प्रेम के बीच की सीमा धुंधली पड़ जाती है। यह हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम किसी बंधन या अपेक्षा से परे होता है, यह तो आत्मा की परमात्मा के प्रति स्वाभाविक और अनन्त प्यास है।
इसके पश्चात, जब भगवान श्रीकृष्ण कुछ समय के लिए गोपियों से अदृश्य हो गए, तो उनके विरह में तड़पती गोपियों की हृदयविदारक दशा का चित्रण गोपी गीत के माध्यम से किया गया। ये गीत केवल विरह की पीड़ा की अभिव्यक्ति नहीं थे, बल्कि भगवान के प्रति उनके अनन्य और अटूट प्रेम का प्रमाण थे। उनकी प्रत्येक पुकार, प्रत्येक आँसू भगवान के प्रति उनके गहरे संबंध को दर्शाता था। गोपियों की व्याकुलता, उनकी पुरानी स्मृतियों का स्मरण और पुनर्मिलन की तीव्र लालसा ने श्रोताओं के हृदय को करुणा और भक्ति से भर दिया होगा। यह प्रसंग हमें यह समझने में मदद करता है कि सच्चा प्रेम धैर्य और सहनशीलता की परीक्षा लेता है, और विरह की अग्नि में तपकर यह और भी अधिक शुद्ध और उज्ज्वल होता है। यह हमें सिखाता है कि प्रियजन से दूरी हमें उनके महत्व को और अधिक एहसास कराती है और हमारे प्रेम को और भी गहरा बनाती है।
कथा में कंस के अत्याचार और उसके द्वारा भेजे गए भयानक असुरों के वध की रोमांचक कहानियाँ भी सुनाई गईं। पूतना, जिसने बाल कृष्ण को विष देने का प्रयास किया, बकासुर, जो एक विशाल बगुले के रूप में आया, और अघासुर, जो एक विशाल अजगर बनकर कृष्ण और उनके साथियों को निगलने आया, ये सभी बुराई और नकारात्मकता के प्रतीक थे। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से इन सभी का नाश करके धर्म और सत्य की रक्षा की। कंस, जो अपने अहंकार और सत्ता के मद में अंधा हो गया था, भगवान के जन्म से ही उन्हें मारने के षड्यंत्र रचता रहा। अंततः, भगवान ने स्वयं उसका वध करके पृथ्वी को उसके अत्याचार से मुक्त किया। यह कथा हमें यह अटूट विश्वास दिलाती है कि अंततः सत्य की ही विजय होती है और बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न दिखे, उसका अंत अवश्य होता है। यह हमें अन्याय के खिलाफ खड़े होने और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।
कथा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और आनंददायक भाग भगवान द्वारकाधीश का रुक्मणी मैया के साथ भव्य विवाह समारोह था। रुक्मणी, जो सौंदर्य, बुद्धि और गुणों की खान थीं, भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपने हृदय में गहरा प्रेम रखती थीं। जब उनके भाई रुक्मी ने उनका विवाह किसी और से तय कर दिया, तो उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को एक गुप्त संदेश भेजकर उनसे विवाह करने की प्रार्थना की। भगवान श्रीकृष्ण ने आकर रुक्मणी का हरण किया और राक्षस विवाह विधि से उनसे विवाह किया। इस दिव्य विवाह का वर्णन अत्यंत उत्साह और उमंग के साथ किया गया होगा, जिसमें भक्तों ने भगवान और रुक्मणी के वैवाहिक जीवन की सुख-समृद्धि की कामना की होगी। यह प्रसंग हमें यह सिखाता है कि प्रेम और निष्ठा से किए गए कार्य हमेशा सफल होते हैं। भगवान का यह विवाह न केवल दो आत्माओं का मिलन था, बल्कि धर्म और न्याय की स्थापना का भी प्रतीक था। इस उत्सव को मनाने से हमें अपने जीवन में भी प्रेम, सम्मान और उत्साह के महत्व को समझने की प्रेरणा मिलती है।
आपका यह अनुभव कि भगवान के उत्सवों को उत्साह के साथ मनाने से आपके घर में भी नित्य उत्साह का संचार होता है, एक गहरा आध्यात्मिक सत्य है। जब हम भक्ति और प्रेम से भगवान के स्मरण और उनकी लीलाओं के गायन में भाग लेते हैं, तो हमारे भीतर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। यह सकारात्मकता हमारे विचारों, भावनाओं और कार्यों को एक नई दिशा देती है, जिससे हमारे जीवन में स्वाभाविक रूप से आनंद और उत्साह बना रहता है। जिस प्रकार एक दीपक दूसरे दीपक को प्रकाशित कर सकता है, उसी प्रकार भगवान की भक्ति और उनके उत्सवों में हमारी सक्रिय भागीदारी हमारे आसपास के वातावरण को भी सकारात्मकता से भर देती है। यह न केवल हमें आंतरिक शांति और संतुष्टि प्रदान करता है, बल्कि हमारे पारिवारिक और सामाजिक जीवन में भी मन और प्रेम को बढ़ाता है। इसलिए, हमें अपने जीवन में भगवान के विभिन्न उत्सवों को पूरी श्रद्धा, प्रेम और उत्साह के साथ मनाना चाहिए, ताकि हमारा जीवन हमेशा आनंद, शांति और सकारात्मकता से परिपूर्ण रहे। यह एक ऐसा आध्यात्मिक अभ्यास है जो हमारे मन को शुद्ध करता है, हमारी आत्मा को तृप्त करता है और हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए आंतरिक शक्ति प्रदान करता है।
