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दमोह के मिशन अस्पताल में वेतन भुगतान को लेकर उत्पन्न हुआ विवाद अब एक गंभीर मोड़ लेता दिख रहा है।

दमोह के मिशन अस्पताल में वेतन भुगतान को लेकर उत्पन्न हुआ विवाद अब एक गंभीर मोड़ लेता दिख रहा है।

कर्मचारियों का यह विरोध प्रदर्शन सिर्फ़ वेतन न मिलने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह अस्पताल के भीतर कथित कुप्रबंधन और कर्मचारियों के प्रति असंवेदनशील रवैये को भी उजागर करता है।

सूत्रों की मानें तो कुछ कर्मचारियों को पिछले दो से तीन महीनों से वेतन नहीं मिला है, जिसके कारण उन्हें अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने में भी कठिनाई हो रही है। एक महिला कर्मचारी,

जिसने नाम न छापने की शर्त पर बात की, ने बताया कि उसके बच्चों की स्कूल फीस अटकी हुई है और घर का राशन लाना भी मुश्किल हो गया है। यह स्थिति केवल एक कर्मचारी की नहीं है, बल्कि कई अन्य कर्मचारी भी इसी तरह की आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं।
अस्पताल के कथित मैनेजमेंट, पुष्पा और दिलीप खरे पर कर्मचारियों ने न केवल वेतन रोकने बल्कि अभद्र व्यवहार और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के भी आरोप लगाए हैं। कर्मचारियों का कहना है कि जब वे अपने वेतन के बारे में पूछते हैं, तो उन्हें टाल दिया जाता है या धमकाया जाता है। एक पुरुष कर्मचारी ने बताया कि एक बार जब उसने वेतन के लिए ज़्यादा दबाव डाला, तो उसे नौकरी से निकालने की धमकी दी गई। इस तरह के उदाहरण दर्शाते हैं कि अस्पताल में कर्मचारियों का शोषण किया जा रहा है और उनकी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।
इस पूरे घटनाक्रम पर दमोह कोतवाली पुलिस की कार्रवाई अब महत्वपूर्ण हो जाती है। कर्मचारियों ने लिखित शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें उन्होंने वेतन भुगतान में देरी और मैनेजमेंट के कथित दुर्व्यवहार का विस्तृत विवरण दिया है। पुलिस अब अस्पताल प्रबंधन को पूछताछ के लिए बुला सकती है और कर्मचारियों के आरोपों की सत्यता की जांच कर सकती है। यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है।
यह घटना दमोह के अन्य निजी अस्पतालों और संस्थानों के लिए भी एक सबक है कि कर्मचारियों के अधिकारों का सम्मान करना और उन्हें समय पर वेतन का भुगतान करना उनकी जिम्मेदारी है। किसी भी संगठन की सफलता उसके कर्मचारियों की संतुष्टि और कल्याण पर निर्भर करती है। यदि कर्मचारियों को इस तरह से प्रताड़ित किया जाएगा, तो इसका सीधा असर अस्पताल की सेवाओं और प्रतिष्ठा पर पड़ेगा।
इस मामले में अब आगे क्या होता है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। क्या पुलिस कर्मचारियों को उनका बकाया वेतन दिलाने में सफल होती है? क्या अस्पताल प्रबंधन अपने रवैये में बदलाव लाता है? और क्या इस घटना से दमोह के अन्य संस्थानों को कोई सीख मिलती है? इन सभी सवालों के जवाब आने वाले समय में ही मिल पाएंगे। फिलहाल, मिशन अस्पताल के कर्मचारी न्याय की उम्मीद में पुलिस की जांच पर अपनी निगाहें टिकाए हुए हैं।

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