दमोह के दिनेश प्यासी जी का यह कार्य केवल एक कर्तव्य का निर्वहन नहीं, बल्कि जीव-जंतुओं के प्रति गहरी सहानुभूति और करुणा का प्रतीक है। तपती गर्मी में जब तापमान असहनीय स्तर पर पहुँच जाता है, तब वन्यजीवों और पक्षियों के लिए पानी की उपलब्धता एक गंभीर चुनौती बन जाती है। प्राकृतिक जल स्रोत सूख जाते हैं और उन्हें अपनी प्यास बुझाने के लिए भटकना पड़ता है, जिससे कई बार उनकी जान भी जोखिम में पड़ जाती है।
ऐसी कठिन परिस्थितियों में दिनेश प्यासी जी ने जिस प्रकार सक्रियता दिखाई और पेड़ों के नीचे सोसर (पानी के बर्तन) रखकर उनमें पानी भरा, वह उनकी दूरदर्शिता और जीवों के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है। यह एक छोटा सा कदम ज़रूर है, लेकिन इसका प्रभाव बहुत गहरा और व्यापक है। यह न केवल उन प्यासे जीवों को राहत पहुँचाएगा, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने में भी सहायक होगा।
हम अक्सर विकास और आधुनिकता की दौड़ में प्रकृति और उसमें रहने वाले जीवों की ज़रूरतों को अनदेखा कर देते हैं। दिनेश प्यासी जी का यह कार्य हमें याद दिलाता है कि हम इस ग्रह को अन्य जीव-जंतुओं के साथ साझा करते हैं और उनके कल्याण की ज़िम्मेदारी भी हमारी है। उनकी इस पहल से अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिलेगी कि वे भी अपने आसपास के बेजुबान प्राणियों की मदद के लिए आगे आएं।
उदाहरण के तौर पर, हम देखते हैं कि गर्मियों में अक्सर पक्षी पानी की तलाश में शहरों और गांवों की ओर रुख करते हैं। यदि हर व्यक्ति अपने घर के बाहर या बालकनी में एक छोटा सा बर्तन पानी भरकर रख दे, तो कितने ही पक्षियों की जान बचाई जा सकती है। इसी प्रकार, वन्य क्षेत्रों के आसपास रहने वाले लोग यदि जानवरों के लिए कृत्रिम जल कुंड बना दें, तो यह वन्यजीवों के लिए जीवनदायिनी साबित हो सकता है।
दिनेश प्यासी जी का यह कार्य एक मौन संदेश है कि मानवता और प्रकृति का सह-अस्तित्व संभव है, बस हमें थोड़ी संवेदनशीलता और जिम्मेदारी दिखाने की आवश्यकता है। उनकी यह पहल निश्चित रूप से सराहनीय है और समाज को इससे सीख लेनी चाहिए।
