Home » अपराध » Mp » “मऊगंज एसपी कार्यालय में इंसाफ की सीढ़ियां नहीं, केवल मंज़िलें – दिव्यांगों और बुजुर्गों की अनदेखी पर सवाल”

“मऊगंज एसपी कार्यालय में इंसाफ की सीढ़ियां नहीं, केवल मंज़िलें – दिव्यांगों और बुजुर्गों की अनदेखी पर सवाल”

“मऊगंज एसपी कार्यालय में इंसाफ की सीढ़ियां नहीं, केवल मंज़िलें – दिव्यांगों और बुजुर्गों की अनदेखी पर सवाल”

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मऊगंज जिले का एसपी कार्यालय एक ऐसी इमारत बन चुका है, जो दिव्यांग और बुजुर्ग पत्रकारों के लिए केवल एक ‘सपना’ है – या कहें, दर्दनाक तजुर्बा। क्या कभी किसी ने सोचा है कि अगर एक पत्रकार व्हीलचेयर पर हो, या उम्रदराज हो, और उसे मऊगंज पुलिस अधीक्षक से मिलना हो – तो वह कैसे पहुंचेगा?
जवाब है – नहीं पहुंच सकता! एसपी कार्यालय की पूरी व्यवस्था दूसरी मंज़िल पर है। ना तो कोई कर्मचारी नीचे मौजूद रहता है, और ना ही कोई ऐसी सुविधा है जिससे विशेष ज़रूरतों वाले लोग संपर्क कर सकें। ये हाल तब है जब प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक समावेशी शासन की बात करते हैं। ताज़ा मामला दिव्यांग पत्रकार दीपक गुप्ता का है, जो बीते दिनों किसी अहम जानकारी के लिए एसपी कार्यालय पहुंचे थे। लेकिन वहां जाकर उन्हें एहसास हुआ कि इंसाफ मांगने के लिए सबसे पहले सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं – और अगर आप चढ़ नहीं सकते, तो आपकी आवाज़ शायद नीचे ही दम तोड़ दे। दिव्यांग दीपक गुप्ता ने कहा, “मैं ऊपर नहीं जा सकता था, और नीचे कोई था ही नहीं जो बात सुन सके। क्या हमें अपने अधिकार जानने के लिए पहले अपनी लाचारी साबित करनी होगी? क्या बड़ा पद होने का मतलब यह है कि जनता खुद ऊपर चढ़कर पहुंचे?” ये सवाल सिर्फ दीपक का नहीं है – ये सवाल मऊगंज के हर उस व्यक्ति का है जो अपने अधिकारों के लिए पुलिस से संपर्क करना चाहता है लेकिन व्यवस्था की दीवारें उसके रास्ते में खड़ी कर दी जाती हैं। अब सवाल यह उठता है – क्या जिले के शीर्ष अधिकारी, कलेक्टर श्री संजय कुमार जैन और पुलिस अधीक्षक श्री दिलीप सोनी, इस बात का संज्ञान लेंगे? क्या वे नीचे एक डेस्क या हेल्प सेंटर की व्यवस्था करेंगे, जहां कोई दिव्यांग, कोई वृद्ध व्यक्ति, या आम नागरिक अपनी बात कह सके? कलेक्टर और एसपी जैसे आईएएस और आईपीएस अधिकारी जनता से दूरी क्यों बना रहे हैं? एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में अफसरों को जनता तक पहुंचना चाहिए, न कि जनता को अफसरों तक पहुंचने के लिए बाधाएं पार करनी पड़ें। यह कोई छोटी समस्या नहीं है, यह प्रशासनिक संवेदनशीलता की परीक्षा है। यदि अधिकारी चाहते हैं कि जनता उन पर विश्वास करे, तो उन्हें अपनी कुर्सी से उतरकर जनता की ज़मीन पर आना होगा। वरना ये कहा जा सकता है –
“एसपी ऑफिस मऊगंज में न्याय की नहीं, केवल मंज़िलों की पहुंच है।”

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