बुरहानपुर की इंदिरा कॉलोनी में सेवानिवृत्त शिक्षक राकेश श्रीवास्तव की बेटियों द्वारा अपने पिता के अंतिम संस्कार में कंधा देना और मुखाग्नि देना वास्तव में एक महत्वपूर्ण घटना है, जो पितृसत्तात्मक समाज में व्याप्त कई रूढ़ियों को तोड़ती है। अक्सर, भारतीय समाज में यह माना जाता है कि अंतिम संस्कार जैसे महत्वपूर्ण रीति-रिवाजों को केवल पुरुष सदस्य ही निभा सकते हैं। बेटों को परिवार की वंश परंपरा को आगे बढ़ाने वाला और ऐसे कार्यों को करने का अधिकारी माना जाता है। इस पारंपरिक सोच के विपरीत, श्रीवास्तव जी की बेटियों ने आगे बढ़कर न केवल अपने पिता के प्रति गहरा सम्मान और प्रेम व्यक्त किया, बल्कि समाज को भी एक सशक्त संदेश दिया कि बेटियां किसी भी जिम्मेदारी को निभाने में सक्षम हैं।
यह घटना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मध्य प्रदेश जैसे राज्य में घटित हुई है, जहां अभी भी कई क्षेत्रों में लैंगिक असमानता व्याप्त है। ऐसे माहौल में बेटियों का इस तरह का कदम उठाना अन्य परिवारों और समुदायों के लिए एक प्रेरणास्रोत बन सकता है। यह दिखाता है कि शिक्षा और आधुनिक विचारों के प्रसार से लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है और महिलाएं अब हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही हैं।
इस खबर में ‘अगर बेटियां ठान लें तो समाज की पुरानी सोच भी बदल जाती है’ यह पंक्ति बहुत ही सारगर्भित है। यह बेटियों के दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास की शक्ति को दर्शाती है। जब महिलाएं किसी कार्य को करने का निश्चय कर लेती हैं, तो वे सामाजिक बंधनों और रूढ़ियों को तोड़ने में सफल हो सकती हैं। राकेश श्रीवास्तव जी की बेटियों ने न केवल अपने पिता के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाई, बल्कि अन्य बेटियों के लिए भी एक उदाहरण स्थापित किया कि उन्हें किसी भी परिस्थिति में कमजोर या असहाय महसूस करने की आवश्यकता नहीं है।
यह घटना हमें यह भी सोचने पर मजबूर करती है कि क्या वाकई में अंतिम संस्कार जैसे रीति-रिवाजों में लिंग के आधार पर कोई भेद होना चाहिए? जब बेटियां अपने माता-पिता से उतना ही प्यार करती हैं और उनकी देखभाल करती हैं जितना कि बेटे, तो उन्हें अंतिम समय में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और अपनी जिम्मेदारियों को निभाने से क्यों रोका जाना चाहिए? श्रीवास्तव जी की बेटियों का यह कदम इस पारंपरिक सोच पर एक करारा प्रहार है और एक अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाज की ओर इशारा करता है।
अंततः, यह खबर हमें यह सिखाती है कि समाज की प्रगति तभी संभव है जब हम पुरानी और रूढ़िवादी सोच को त्यागकर नए विचारों को अपनाएं और महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार और अवसर प्रदान करें। बुरहानपुर की इन बेटियों ने न केवल अपने पिता को सम्मानजनक विदाई दी, बल्कि पूरे समाज को एक नई दिशा भी दिखाई। उनकी यह कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।
बुरहानपुर की इंदिरा कॉलोनी में सेवानिवृत्त शिक्षक राकेश श्रीवास्तव की बेटियों द्वारा अपने पिता के अंतिम संस्कार में कंधा देना और मुखाग्नि देना वास्तव में एक महत्वपूर्ण घटना है


mpupdate24x7
सभी जिलो के संवाददाता ब्लाक प्रमुख नियुक्त करना है हमसे जुड़ने के लिए आज ही संपर्क करें l
*Mpupdate24x7*
*ब्यूरो चैनल हेड संदीप शर्मा दमोह मध्य प्रदेश*
*दमोह जिले के सातों ब्लॉक में संवाददाता की आवश्यकता है*
*अनुभवी इच्छुक व्यक्ति ही संपर्क करें*
*9826162144*
खबरें विज्ञापन एवं हमसे जुड़ने के लिए संपर्क करें
*बिल्कुल निःशुल्क*
हमारा पता कोऑपरेटिव बैंक चौराहा दमोह Mpupdate24x7 mob. 9826162144