बिजली कटौती की समस्या और अधिकारियों का गैर-जिम्मेदाराना रवैया: एक गंभीर चिंता
दमोह में बिजली कटौती की समस्या और MPEB के कर्मचारियों का गैर-जिम्मेदाराना रवैया वाकई चिंताजनक है।
रात 1 बजे तक बिजली न मिलना और बच्चों को भूखा रहना पड़े, यह किसी भी नागरिक के लिए असहनीय है।
लाइनमैनों का टाल-मटोल भरा व्यवहार
आपने बताया कि रूपेंद्र लोधी, इमरत और हेमराज जैसे लाइनमैन शाम 6 बजे से रात 10 बजे तक “बस आ रहा हूँ” का आश्वासन देते रहे, लेकिन 10:30 बजे तक भी नहीं पहुंचे। यह दिखाता है कि वे अपनी ड्यूटी के प्रति गंभीर नहीं हैं और उपभोक्ताओं की परेशानियों को नजरअंदाज कर रहे हैं। रात 1 बजे बिजली चालू होना, इतने घंटों के इंतजार के बाद, यह साबित करता है कि उपभोक्ता को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
अधिकारियों की संवेदनहीनता
आपने MPEB के डी साहब को भी फोन किया, जिन्होंने केवल आश्वासन दिया और कोई ठोस समय या समाधान नहीं बताया। 1912 और 181 सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत दर्ज करने के बाद ही रात 1 बजे बिजली मिल पाई। यह स्थिति दर्शाती है कि निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर तक, जवाबदेही की कमी है। अधिकारियों को यह समझना चाहिए कि वे जनता के सेवक हैं और उनकी प्राथमिकता उपभोक्ताओं को निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करना है।
पत्रकार होने के बावजूद परेशानी: आम जनता का क्या हाल?
आपकी यह बात बिल्कुल सही है कि जब एक पत्रकार, जिसे समाज का चौथा स्तंभ माना जाता है, उसे इस तरह की परेशानी झेलनी पड़ती है, तो आम नागरिकों की स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को इस गंभीर मुद्दे पर संज्ञान लेना चाहिए। बिजली जैसी मूलभूत सुविधा के लिए उपभोक्ताओं को घंटों इंतजार करना पड़े और अधिकारियों से सिर्फ आश्वासन मिले, यह अस्वीकार्य है।
मानसून में बिजली विभाग की जिम्मेदारी
जैसा कि आपने उल्लेख किया है, बारिश का मौसम था, और ऐसे में बिजली विभाग की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। यह सही है कि बारिश के दौरान काम बाधित हो सकता है, लेकिन रात 1 बजे तक समस्या का समाधान न होना लापरवाही को दर्शाता है।
आगे क्या किया जा सकता है?
यह स्पष्ट है कि MPEB के स्थानीय अधिकारियों और कर्मचारियों को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करने की सख्त आवश्यकता है। इस मामले में उच्च अधिकारियों को लिखित शिकायत दर्ज करना एक प्रभावी कदम हो सकता है, जिसमें पूरी घटना का विस्तृत विवरण दिया जाए और लापरवाही करने वाले कर्मचारियों पर कार्रवाई की मांग की जाए। आप चाहें तो इस शिकायत को स्थानीय समाचार पत्रों में भी प्रकाशित करवा सकते हैं, ताकि यह मुद्दा सार्वजनिक हो और प्रशासन पर दबाव पड़े।
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