Home » अपराध » दमोह में अक्षय तृतीया के अवसर पर बाल विवाह की रोकथाम के लिए आयोजित यह बैठक एक महत्वपूर्ण और समयोचित कदम है। यह पहल न केवल कानून और सरकारी प्रयासों को मजबूती प्रदान करती है

दमोह में अक्षय तृतीया के अवसर पर बाल विवाह की रोकथाम के लिए आयोजित यह बैठक एक महत्वपूर्ण और समयोचित कदम है। यह पहल न केवल कानून और सरकारी प्रयासों को मजबूती प्रदान करती है

दमोह में अक्षय तृतीया के अवसर पर बाल विवाह की रोकथाम के लिए आयोजित यह बैठक एक महत्वपूर्ण और समयोचित कदम है। यह पहल न केवल कानून और सरकारी प्रयासों को मजबूती प्रदान करती है

, बल्कि समाज के धार्मिक और सामाजिक नेताओं को एक मंच पर लाकर इस कुप्रथा के खिलाफ एक सामूहिक आवाज बुलंद करती है।
बाल विवाह, जैसा कि बैठक में बताया गया, न केवल नाबालिग बच्चों के मौलिक अधिकारों का हनन है, बल्कि यह उनके संपूर्ण विकास में एक गंभीर बाधा उत्पन्न करता है। शिक्षा से वंचित रहना, स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना, और शोषण के प्रति अधिक संवेदनशील होना बाल विवाह के कुछ प्रमुख दुष्परिणाम हैं। विशेष रूप से, नाबालिग लड़कियों के लिए इसके परिणाम और भी गंभीर हो सकते हैं, जिनमें कम उम्र में गर्भावस्था और मातृत्व, घरेलू हिंसा का खतरा, और सामाजिक अलगाव शामिल हैं।
मान लीजिए कि एक 15 वर्षीय लड़की का विवाह कर दिया जाता है। उसकी शिक्षा अधूरी रह जाती है, जिससे उसके भविष्य में बेहतर अवसरों की संभावना कम हो जाती है। शारीरिक और मानसिक रूप से अपरिपक्व होने के कारण, वह गर्भावस्था और बच्चे के जन्म से जुड़ी जटिलताओं के प्रति अधिक संवेदनशील होती है। इसके अतिरिक्त, कम उम्र में विवाह होने के कारण उसे अपने पति और ससुराल वालों पर आर्थिक और सामाजिक रूप से अधिक निर्भर रहना पड़ता है, जिससे उसके शोषण की संभावना बढ़ जाती है।
इसी तरह, यदि एक 17 वर्षीय लड़के का विवाह कर दिया जाता है, तो उस पर कम उम्र में परिवार की जिम्मेदारी आ जाती है, जिससे उसकी शिक्षा और करियर के विकास में बाधा आती है। वह भी मानसिक तनाव और सामाजिक दबाव का शिकार हो सकता है।
वास्तव में इस बैठक का महत्व केवल अक्षय तृतीया तक ही सीमित नहीं है। यह एक सतत प्रक्रिया की शुरुआत है, जिसमें समाज के सभी वर्गों को मिलकर बाल विवाह के खिलाफ काम करना होगा। काजी और धर्म गुरु धार्मिक ग्रंथों और शिक्षाओं के माध्यम से बाल विवाह के निषेध और इसके दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता फैला सकते हैं। समाज प्रमुख अपने समुदायों में इस कुप्रथा के खिलाफ सामाजिक दबाव बना सकते हैं और इसे रोकने के लिए सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।
संकल्प संस्था और महिला बाल विकास विभाग द्वारा उपस्थितजनों को शपथ दिलाना एक शक्तिशाली प्रतीकात्मक कार्य है। यह दर्शाता है कि सभी हितधारक बाल विवाह मुक्त दमोह के लक्ष्य के प्रति दृढ़ संकल्पित हैं। इस संकल्प को जमीनी स्तर पर साकार करने के लिए निरंतर प्रयास और जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है।

अभियान..व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाएं, जिनमें नुक्कड़ नाटक, लोक गीत, और अन्य पारंपरिक माध्यमों का उपयोग किया जाए।
शिक्षा का महत्व: बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए और परिवारों को इसके महत्व के बारे में जागरूक किया जाए।
आर्थिक सशक्तिकरण: महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए कार्यक्रम चलाए जाएं, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें और बाल विवाह के दबाव का विरोध कर सकें।
ग्राम स्तर पर समितियां: ग्राम स्तर पर बाल विवाह रोकथाम समितियां गठित की जाएं, जो स्थानीय स्तर पर निगरानी रखें और संभावित बाल विवाहों को रोकने में मदद करें।
कानूनी प्रावधानों का सख्ती से पालन: बाल विवाह निषेध अधिनियम के प्रावधानों का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाए और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए।
दमोह में शुरू हुई यह पहल एक उम्मीद की किरण है। यदि सभी संबंधित पक्ष इसी समर्पण और सहयोग के साथ काम करते रहें, तो निश्चित रूप से बाल विवाह मुक्त समाज का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।

इस खबर पर अपनी प्रतिक्रिया जारी करें

Leave a Comment

Share This