Home » धर्म » भगवान श्री परशुराम जन्मोत्सव के अवसर पर दमोह में आयोजित भव्य शोभायात्रा एक ऐसा दृश्य था जिसने शहर के हृदय में भक्ति, उत्साह और सामुदायिक भावना का जीवंत रंग भर दिया। यह केवल एक धार्मिक जुलूस नहीं था, बल्कि यह भगवान परशुराम के आदर्शों – शक्ति, ज्ञान और धर्म के प्रति गहरी श्रद्धा का एक सार्वजनिक प्रदर्शन था।

भगवान श्री परशुराम जन्मोत्सव के अवसर पर दमोह में आयोजित भव्य शोभायात्रा एक ऐसा दृश्य था जिसने शहर के हृदय में भक्ति, उत्साह और सामुदायिक भावना का जीवंत रंग भर दिया। यह केवल एक धार्मिक जुलूस नहीं था, बल्कि यह भगवान परशुराम के आदर्शों – शक्ति, ज्ञान और धर्म के प्रति गहरी श्रद्धा का एक सार्वजनिक प्रदर्शन था।

भगवान श्री परशुराम जन्मोत्सव के अवसर पर दमोह में आयोजित भव्य शोभायात्रा एक ऐसा दृश्य था जिसने शहर के हृदय में भक्ति, उत्साह और सामुदायिक भावना का जीवंत रंग भर दिया। यह केवल एक धार्मिक जुलूस नहीं था, बल्कि यह भगवान परशुराम के आदर्शों – शक्ति, ज्ञान और धर्म के प्रति गहरी श्रद्धा का एक सार्वजनिक प्रदर्शन था।
शोभायात्रा का प्रारंभ शहर के एक प्रमुख मंदिर हनुमन टेकरी से हुआ, जहाँ भगवान परशुराम की प्रतिमा को एक सुंदर और सुसज्जित रथ पर विराजमान किया गया था। रथ को फूलों और रंगीन वस्त्रों से सजाया गया था, जो इस अवसर की पवित्रता और भव्यता को दर्शा रहा था। जैसे ही रथ आगे बढ़ा, श्रद्धालुओं का एक विशाल समूह उसमें शामिल होता गया। पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों की मधुर ध्वनि, जैसे ढोल और नगाड़े,DJ की धुन से राममय वातावरण रहा और भक्तजन भक्तिमय गीतों और मंत्रों का जाप कर रहे थे।
शोभायात्रा में विभिन्न प्रकार की झांकियां प्रस्तुत की गईं, जो भगवान परशुराम के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं और उनके द्वारा किए गए कार्यों को दर्शा रही थीं। एक झांकी में उन्हें अपने फरसे के साथ p जीबांत झांकी को दिखाया गया था, जो उनके शौर्य और बुराई के विरुद्ध उनके संघर्ष का प्रतीक है। उनके ज्ञान और आध्यात्मिक गहराई को व्यक्त कर रहा हो l इन झांकियों के माध्यम से, युवा पीढ़ी को भगवान परशुराम की शिक्षाओं और उनके महान व्यक्तित्व से परिचित होने का अवसर मिला।
शोभायात्रा के मार्ग में, विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने स्वागत पंडाल लगाए थे, जहाँ श्रद्धालुओं के लिए शीतल जल, शरबत और फल वितरित किए जा रहे थे। यह सेवाभाव और सामुदायिक सहयोग की भावना इस आयोजन की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी। बच्चों और बुजुर्गों सहित सभी आयु वर्ग के लोग इस शोभायात्रा में शामिल हुए, जो धर्म और संस्कृति के प्रति उनकी अटूट आस्था को दर्शाता है।
सुरक्षा व्यवस्था के कड़े इंतजाम किए गए थे, जिसमें स्थानीय कोतवाली पुलिस का सराहनीय योगदान रहा जिससे शोभायात्रा शांतिपूर्वक और सुव्यवस्थित ढंग से संपन्न हो सके। यातायात को सुचारू रूप से चलाने के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई थीं, जिससे आम नागरिकों को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
इस भव्य शोभायात्रा का समापन शहर के सिविल वार्ड शिव मंदिर में हुआ, जहाँ एक विशाल सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में विद्वानों और धार्मिक गुरुओं ने भगवान परशुराम के जीवन और उनकी शिक्षाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने उनके न्यायप्रियता, त्याग और धर्म के प्रति समर्पण के गुणों को याद दिलाया और लोगों को उनसे प्रेरणा लेने का आह्वान किया। यात्रा में शामिल पंडित मोनू पाठक पंडित एडवोकेट गजेंद्र चौबे पंडित पुरुषोत्तम पशु चौबे पंडित मनु मिश्रा पंडित मनोज देवरिया पंडित शिव गौतम पंडित जमुना चौबे पंडित कामेश शर्मा पंडित संदीप शर्मा और भी शहर के गणमान्य नागरिक साधु संत उपस्थित रहे आपको बता दें परशुराम जी की जो जीबंत झांकी थी यह जीवंत झांकी हमारे आदरणीय बड़े भाई LN वैष्णव जी इस रूप में नजर आ रहे थे l
दमोह में भगवान श्री परशुराम जन्मोत्सव के अवसर पर आयोजित यह भव्य शोभायात्रा न केवल एक धार्मिक आयोजन था, बल्कि यह सामुदायिक एकता, सांस्कृतिक गौरव और धार्मिक मूल्यों के प्रति सम्मान का एक जीवंत उदाहरण भी था। इसने शहर के लोगों को एक साथ आने और अपनी साझा विरासत का जश्न मनाने का अवसर प्रदान किया, और निश्चित रूप से यह अनुभव आने वाले कई वर्षों तक उनकी स्मृतियों में ताजा रहेगा।
*आप सभी को जय जय परशुराम*

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