“एसडीएम सदर अयोध्या विकास धर दुबे को ईमानदारी का इनाम मिला तबादला, लेकिन जहां भी रहेंगे, गरीबों के आंसुओं को पोछने और रामराज्य की कल्पना को ज़मीन पर उतारने का संकल्प नहीं छोड़ेंगे“===========================================
अयोध्या ।जैसा नाम वैसा काम नाम विकासधर दुबे और सच्चे अर्थों में ‘विकास’। अयोध्या सदर की तहसील में जब उन्होंने चार्ज संभाला, तब किसी को यह अंदाज़ा नहीं था कि आने वाले समय में एक अफसर जनता के दिल में भगवान जैसा स्थान बना लेगा। जहां गरीब की गुहार सिर्फ कागज़ों में दम तोड़ देती थी, वहां दुबे साहब की मौजूदगी में दरवाज़े खुलने लगे, और न्याय सजीव हो उठा।
बूढ़ी मां को आवास मिला, दिव्यांग को राशन कार्ड, विधवा बहन को जमीन वापस – ये सब खबरें नहीं थीं, बल्कि रोज़ की हकीकत बन चुकी थीं। सर का एक ही उद्देश्य था – “हम राम की धरती पर हैं, रामराज्य की कल्पना को असल में दिखाना है।” और इस उद्देश्य के पीछे उनका समर्पण इतना प्रबल था कि सत्ता की रस्साकशी और भ्रष्ट राजनीति भी उन्हें झुका न सकी।
लेकिन जैसा कि अक्सर होता है – जब कोई ईमानदारी की ऊंचाइयों को छूने लगता है, तब कुछ लोग उसकी जड़ें काटने की साजिश करने लगते हैं। 9 अप्रैल की रात, 7 से 8 बजे के बीच, एक खबर आती है कि एसडीएम सदर अयोध्या, विकासधर दुबे का तबादला बीकापुर कर दिया गया है। ये खबर आई नहीं, बिजली की तरह कड़क गई। जनमानस, समाजसेवी, वकील, पत्रकार, हर वर्ग से एक ही स्वर – “ये अफसर नहीं, मसीहा था।”
सर की इच्छा थी कि उन्हें भगवान श्रीराम की सेवा में लगा दिया जाए – मंदिर परिसर में ऐसा दायित्व मिले, जिससे हर क्षण प्रभु के दर्शन हों और आत्मा को शांति मिले। लेकिन लगता है भगवान को अभी उनसे और सेवा लेनी है। शायद प्रभु ने उन्हें हनुमान का स्वरूप देकर बीकापुर भेजा है – जहां फिर से किसी विधवा की जमीन छिनी होगी, किसी बुज़ुर्ग की आंखों में आसुओं की नमी होगी, और किसी बेरोज़गार के पेट में भूख होगी – वहां फिर विकासधर दुबे पहुंचेंगे, उम्मीद लेकर, न्याय लेकर।
उनकी लोकप्रियता कुछ भ्रष्ट लोगों को हज़म नहीं हुई – क्योंकि वो निर्णय लेते थे, बिना लालफीताशाही के। किसी का दबाव नहीं मानते थे, क्योंकि संविधान की शपथ उन्होंने सिर्फ ज़ुबान से नहीं, आत्मा से ली थी। सर हमेशा कहते थे – “नौकरी रहे या न रहे, लेकिन मेरी वजह से किसी गरीब की आंख में आंसू नहीं आना चाहिए।”
अब जनता की नज़रें आने वाले एसडीएम पर हैं – क्या वो विकासधर दुबे की तरह न्याय को जमीनी स्तर तक उतार पाएंगे? क्या वो भी किसी भूख, किसी बेघर, किसी पीड़ित के लिए लड़ सकेंगे?
एक बात तय है – विकासधर दुबे को भले ही सदर से हटा दिया गया हो, लेकिन आम जनता के दिल से हटाना नामुमकिन है। और यही डर था उन लोगों को जो व्यवस्था के नाम पर शोषण को ही परंपरा बना बैठे हैं।
दरअसल, विकासधर दुबे का नाम सुनते ही भूमाफिया, खनन माफिया और अराजक तत्वों के मन में डर बैठ जाता था। जैसे ही कोई अवैध निर्माण या ज़मीन कब्ज़े की योजना बनती, खौफ के साथ एक ही नाम गूंजता – “अगर विकासधर दुबे आ गए तो?” क्योंकि सर के लिए सेवा समय से बंधी नहीं थी – वो 24 घंटे चौकस रहते थे। रात 2 बजे हो या दोपहर, जैसे ही कोई सूचना मिलती, खुद मौके पर पहुंच जाते।
उनके अचानक छापे, बिना सूचना की जांचें और फौरन कार्रवाई ने भ्रष्टाचारियों की नींद उड़ा दी थी। ज़मीनी विवाद हो, खनन की शिकायत हो, या किसी शोषित की पुकार – सर वहां पहुंच जाते थे जहां लोगों ने उम्मीद छोड़ दी थी। यही कारण है कि अराजक तत्वों के लिए ‘डर’ का दूसरा नाम बन चुके थे विकासधर दुबे, और आम जनता के लिए ‘विश्वास’ का।
आज बीकापुर भले नई पोस्टिंग है, लेकिन सेवा का संकल्प वही पुराना है – रामराज्य की परिकल्पना को व्यवहार में उतारने वाला। एक सच्चा अफसर, एक निष्कलंक कर्मयोगी और जनता के दुख-दर्द में साझेदार हूं l