दमोह में भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) का यह विरोध प्रदर्शन नेशनल हेराल्ड मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाई को लेकर कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रव्यापी विरोध के जवाब में था। भाजयुमो का मानना था कि कांग्रेस पार्टी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ चल रही कानूनी प्रक्रिया में अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप कर रही है, और इसे “भ्रष्टाचार को बचाने का प्रयास” मान रही थी।
नेशनल हेराल्ड मामला एक जटिल कानूनी और राजनीतिक मुद्दा है, जो 2012 में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर एक निजी आपराधिक शिकायत से उत्पन्न हुआ है। शिकायत में आरोप लगाया गया कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित कांग्रेस नेताओं ने यंग इंडियन लिमिटेड नामक एक कंपनी के माध्यम से एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) की संपत्तियों का अधिग्रहण करके धोखाधड़ी और विश्वासघात किया। एजेएल नेशनल हेराल्ड अखबार का प्रकाशक था।
ईडी इस मामले में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की जांच कर रही है, और सोनिया गांधी और राहुल गांधी को पूछताछ के लिए बुलाया था। कांग्रेस पार्टी ने ईडी की कार्रवाई को राजनीतिक प्रतिशोध बताया और आरोप लगाया कि सरकार विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है।
दमोह में भाजयुमो का पुतला दहन, कांग्रेस के विरोध प्रदर्शनों के जवाब में एक प्रतीकात्मक कार्रवाई थी। पुतला दहन भारतीय राजनीति में विरोध का एक सामान्य रूप है, और इसका उपयोग अक्सर सार्वजनिक आक्रोश व्यक्त करने के लिए किया जाता है। भाजयुमो के सदस्यों ने “भ्रष्टाचारियों” का पुतला जलाकर, कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार के प्रति अपना विरोध स्पष्ट रूप से व्यक्त किया।
इस विरोध प्रदर्शन में भाजयुमो के अध्यक्ष प्रिंस जैन, राकेश ठाकुर, राजुल, गौरव, कृष्णा, आलोक और भाजपा महिला मंडल के सदस्यों की उपस्थिति ने इस मुद्दे पर भाजपा की गंभीरता को दर्शाया। सुरक्षा के लिए फायर ब्रिगेड और पुलिस की उपस्थिति यह सुनिश्चित करने के लिए थी कि विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे और किसी भी अप्रिय घटना से बचा जा सके।
यह घटना दमोह और राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक तनाव को उजागर करती है, जहां विभिन्न राजनीतिक दल अपने दृष्टिकोणों और हितों की रक्षा के लिए सक्रिय रूप से शामिल हैं।
