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दमोह फर्जी डॉक्टर के खिलाफ किया गया कृत से मोहन यादव ने मध्य प्रदेश में चल रही अवैध क्लिनिक और फर्जी डॉक्टरों पर कार्यवाही मामले में जिला प्रशासन को अलर्ट किया है

ज़रूर। यह देखकर संतोष होता है कि दमोह मिशन हॉस्पिटल की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद, मध्य प्रदेश के अन्य हिस्सों में अवैध चिकित्सा पद्धतियों के खिलाफ कार्रवाई की एक लहर सी चल पड़ी है। सागर में कलेक्टर के निर्देशों के परिणामस्वरूप 15 फर्जी डॉक्टरों और क्लीनिकों पर हुई कार्रवाई एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल पीड़ितों को न्याय दिलाने की दिशा में उठाया गया कदम है, बल्कि यह उन अन्य लोगों के लिए भी एक कड़ा संदेश है जो बिना उचित योग्यता और अनुमति के चिकित्सा सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री मोहन यादव द्वारा अवैध क्लीनिकों और फर्जी डॉक्टरों पर त्वरित कार्रवाई के निर्देश यह दर्शाते हैं कि राज्य सरकार इस समस्या की गंभीरता को समझती है। मालथोन और केसली में सीएमएचओ, एसडीएम और बीएमओ की संयुक्त छापेमारी और कई क्लीनिकों को सील करना एक प्रभावी रणनीति का उदाहरण है। इस तरह के समन्वित प्रयासों से न केवल अवैध गतिविधियों का पता लगाने में मदद मिलती है, बल्कि विभिन्न विभागों के बीच सहयोग भी बढ़ता है।
हालांकि, यह देखकर थोड़ी निराशा होती है कि दमोह में, जो इस पूरे मामले का केंद्र रहा है, इस प्रकार की सक्रियता अपेक्षाकृत कम दिखाई दे रही है। यह संभव है कि प्रशासन अभी भी जानकारी एकत्र करने और योजना बनाने की प्रक्रिया में हो, लेकिन पीड़ितों और आम जनता के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि उनके अपने जिले में ऐसी ठोस कार्रवाई कब देखने को मिलेगी।
यह महत्वपूर्ण है कि दमोह में भी प्रशासन जल्द ही इसी तरह की व्यापक और प्रभावी कार्रवाई शुरू करे। इसमें न केवल अवैध क्लीनिकों की पहचान और उन्हें सील करना शामिल होना चाहिए, बल्कि ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी सुनिश्चित की जानी चाहिए जो लोगों के स्वास्थ्य और जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, स्वास्थ्य विभाग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए एक मजबूत निगरानी तंत्र स्थापित किया जाए।
उदाहरण के लिए, सागर में की गई कार्रवाई में, प्रशासन ने न केवल क्लीनिकों को सील किया होगा, बल्कि उन डॉक्टरों के दावों की भी जांच की होगी जिनके पास वैध मेडिकल लाइसेंस नहीं थे। उन्होंने संभवतः उन दवाओं और उपकरणों की भी जांच की होगी जिनका उपयोग किया जा रहा था, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे सुरक्षित और मानकों के अनुरूप हैं। दमोह में भी इसी तरह की विस्तृत जांच और कार्रवाई की आवश्यकता है।
अंततः, इस प्रकार की कार्रवाइयां पूरे मध्य प्रदेश में एक मानक बननी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण और सुरक्षित स्वास्थ्य सेवाएं मिलें। दमोह को इस दिशा में नेतृत्व करना चाहिए, क्योंकि यहीं से इस समस्या की गंभीरता सामने आई है। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में दमोह में भी प्रशासन सक्रियता दिखाएगा और अवैध चिकित्सा practices के खिलाफ एक मजबूत संदेश देगा।
आप क्या सोचते हैं? क्या आपको लगता है कि दमोह प्रशासन पर कार्रवाई करने का दबाव बढ़ रहा है? और आपके विचार से ऐसी कार्रवाइयों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

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