*दमोह जिले में हर ओर घोटाले ही घोटाले: कोई विभाग नहीं बचा, आमजन बेहाल*
*भ्रष्टाचार ने सरकारी व्यवस्था को किया खोखला, जनता पूछ रही है – जिम्मेदार कौन?*
*दमोह मध्यप्रदेश के दमोह जिले में इन दिनों एक अघोषित सच्चाई गूंज रही है—”कोई विभाग नहीं बचा, हर जगह घोटाला चल रहा है।” आमजनता का भरोसा धीरे-धीरे तंत्र से उठता जा रहा है। चाहे वो स्वास्थ्य विभाग हो, शिक्षा, विभाग ग्राम पंचायत, नगर निगम, राजस्व या पुलिस—हर जगह भ्रष्टाचार ने गहरी जड़ें जमा ली हैं। शिकायतें होती हैं, जांच के नाम पर खानापूर्ति होती है, लेकिन कार्रवाई नदारद।
*स्वास्थ्य विभाग में लापरवाही और लूट*
जिला अस्पताल में कभी डिलीवरी महिलाओं की मौत को लेकर गानों के द्वारा रिश्वत लिए जाने को लेकर कई बार वीडियो उजागर हो चुके हैं यहां तक दवा खरीदी से लेकर एक्सरे मशीनों और अन्य मेडिकल उपकरणों की आपूर्ति में अनियमितताएं उजागर हो चुकी हैं। हाल ही में अस्पताल इलाज करने गए महेंद्र सिंह लोधी को इलाज तो नहीं मिला बस में गंदी गंदी गालियां नर्स के द्वारा और मारपीट की गई ग्रामीण क्षेत्रों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की हालत और भी खराब है।
*शिक्षा विभाग में कागजों पर स्कूल और भत्तों में खेल*
दमोह जिले में हाल है मैं 24 शिक्षक फर्जी पाए गए जिसके डर से दो शिक्षकों ने आत्महत्या कर ली थी कुछ लोग जेल भी पहुंच चुके हैं लेकिन सरकारी स्कूलों में फर्जी बच्चों की एंट्री कर छात्रवृत्ति और ड्रेस के पैसे हड़पने के मामले सामने आए हैं। बिना भवन वाले स्कूलों की मरम्मत के नाम पर लाखों रुपये स्वीकृत हुए, लेकिन मौके पर कोई कार्य नहीं हुआ।
*पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में भी लूट का खुला खेल*
मनरेगा के तहत फर्जी हाजिरी लगाकर भुगतान लेने की शिकायतें आम हैं। ग्राम पंचायतों में नाली, सड़क और सामुदायिक भवन निर्माण में गुणवत्ता की अनदेखी और भुगतान में गड़बड़ी सामने आ चुकी है।
*दमोह नगर पालिका में ठेकेदारी के खेल*
नगर निगम में सफाई कार्य, सीवरेज लाइन और नालियों के निर्माण के नाम पर भारी गोलमाल हुआ है। सड़क मरम्मत के नाम पर सिर्फ बजट खर्च कर दिया गया, जमीन पर गड्ढे अब भी जस के तस हैं। यहां तक ही विगत दिनों पहले बिल के भुगतान को लेकर ठेकेदारों ने सीएमओ प्रदीप शर्मा के मुंह पर कालिख भी पोती गई थी
*राजस्व विभाग में दलाली और रिश्वत का बोलबाला*
नामांतरण, सीमांकन और पट्टे जैसे मामलों में बिना रिश्वत के फाइलें आगे नहीं बढ़तीं। कई मामलों में पटवारियों और अधिकारियों की भूमिका संदेह के घेरे में है, लेकिन जांच की रफ्तार धीमी है। ग्रामीण अंचल के लोग सीमांकन को लेकर आज भी दर-दर भटक रहे हैं जो पटवारी का कहना होता है काम अधिक होने के कारण अब अगले वर्ष आपके सीमांकन हो पाएंगे l क्योंकि 15 जून के बाद सीमांकन प्रक्रिया बंद हो जाती है
*पुलिस विभाग पर भी सवालिया निशान*
थानों में एफआईआर दर्ज करने में देरी और अवैध कारोबार पर मूकदर्शक बने रहने के आरोप लगते रहते हैं। हाल ही में शराब कारोबार को लेकर पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े हुए हैं। भगवती मानव कल्याण संगठन के लोगों ने हटा पटेरा बटियागढ़ में अवैध शराब पकड़ी है और उनका कहना है कि fir दर्ज करो ठेकेदार पर भी fir दर्ज करो लेकिन पुलिस ने आज तक ऐसा नहीं किया
*जनता परेशान, प्रशासन मौन*
आए दिन अखबारों में घोटालों की खबरें छपती हैं, पर कार्रवाई के नाम पर सिर्फ नोटिस या विभागीय जांच शुरू होती है, जिसका कोई नतीजा सामने नहीं आता। आमजन पूछ रहा है—क्या दमोह में जवाबदेही नाम की कोई चीज़ बची है?
अब सवाल यह है कि कब तक यह सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा?
क्या सरकार, प्रशासन और जनप्रतिनिधि मिलकर इस व्यवस्था को सुधारने का प्रयास करेंगे या जनता को खुद ही जवाब मांगने सड़क पर उतरना पड़ेगा?