*प्राचीन धरोहर हो रही खंडहर में तब्दील जिले की ऐतिहासिक विरासत खतरे में*
दमोह जिला का इतिहास दमयंत्री नगर से शुरुआत हुई जो कि मध्य प्रदेश राज्य का एक अभिन्न अंग है जिले में आज भी पुरातत्व संग्रहालय और जो गिरजाघर एजेंसी तमाम संग्रहालय स्थित है अपने गर्भ में सदियों पुरानी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को समेटे हुए है। इस क्षेत्र में प्राचीन मंदिरों, किलों, बावड़ियों और अन्य पुरातात्विक महत्व की संरचनाओं की एक समृद्ध श्रृंखला विद्यमान है, जो इस क्षेत्र के गौरवशाली अतीत की मूक गवाह हैं। स्थानीय लोगों और इतिहासकारों के अनुसार, इन धरोहरों की संख्या दर्जनों में है, जो विभिन्न राजवंशों और कालखंडों की स्थापत्य कला और सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं को दर्शाती हैं। इनमें से कुछ संरचनाएँ तो इतनी प्राचीन हैं कि उनका ऐतिहासिक काल निर्धारण भी जटिल है, जो उन्हें और भी अधिक महत्वपूर्ण और रहस्यमय बना देता है।
हालांकि, यह अत्यंत चिंताजनक विषय है कि इन अमूल्य धरोहरों की वर्तमान स्थिति अत्यंत दयनीय है। उचित देखभाल और संरक्षण के अभाव में, ये प्राचीन संरचनाएँ धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील होती जा रही हैं। प्राकृतिक तत्वों जैसे कि वर्षा, धूप और हवा का इन पर लगातार नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इसके अतिरिक्त, मानवीय गतिविधियाँ, जिनमें अतिक्रमण, तोड़फोड़ और जागरूकता की कमी शामिल है, भी इन धरोहरों के क्षरण में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। कई स्थानों पर, ऐतिहासिक महत्व की दीवारों पर आधुनिक लोगों द्वारा नाम या अन्य निशान खरोंच दिए गए हैं, प्राचीन पत्थरों को निकालकर अन्यत्र उपयोग कर लिया गया है, और कुछ संरचनाएँ तो स्थानीय लोगों द्वारा अस्थायी निर्माण या अन्य उद्देश्यों के लिए अनधिकृत रूप से उपयोग की जा रही हैं।
इस गंभीर स्थिति के लिए मुख्य रूप से पुरातत्व विभाग की निष्क्रियता और उदासीनता को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। स्थानीय निवासियों और इतिहास के प्रति जागरूक व्यक्तियों का आरोप है कि विभाग इन धरोहरों की पहचान, संरक्षण और रखरखाव के लिए अपनी संवैधानिक और नैतिक जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं कर रहा है। कई महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों पर न तो सुरक्षा व्यवस्था है और न ही कोई सूचना पटल लगा है जो उनके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता हो। परिणामस्वरूप, आम जनता इन स्थलों के महत्व से अनभिज्ञ रहती है और अनजाने में ही उनके क्षरण का कारण बन सकती है।
उदाहरण के तौर पर, दमोह जिले के भीतर स्थित कुछ प्राचीन मंदिर अपनी उत्कृष्ट वास्तुकला और मूर्तियों के लिए जाने जाते थे। लेकिन आज, इनमें से कई मंदिरों की दीवारें जर्जर हो चुकी हैं, मूर्तियाँ खंडित हो गई हैं, और गर्भगृह तक पहुंचना भी मुश्किल हो गया है। इसी प्रकार, कुछ ऐतिहासिक किले, जो कभी सामरिक महत्व के केंद्र थे, अब झाड़ियों और मलबे से अटे पड़े हैं, और उनकी प्राचीरें ढह रही हैं। बावड़ियाँ, जो कभी जल संरक्षण और सामुदायिक जीवन के महत्वपूर्ण अंग थीं, अब कूड़ेदान में तब्दील हो रही हैं।
इन धरोहरों का खंडहर में तब्दील होना न केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का नुकसान है, बल्कि यह क्षेत्र की पर्यटन क्षमता को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। यदि इन प्राचीन स्थलों का उचित संरक्षण और विकास किया जाए, तो ये राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है और रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं।
यह आवश्यक है कि पुरातत्व विभाग और स्थानीय प्रशासन इस गंभीर मुद्दे पर तत्काल ध्यान दें। इन प्राचीन धरोहरों की पहचान, सूचीकरण और वैज्ञानिक तरीके से संरक्षण के लिए एक व्यापक योजना तैयार की जानी चाहिए। स्थानीय समुदायों को इन धरोहरों के महत्व के बारे में जागरूक करने के लिए शिक्षा और जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया जाना चाहिए ताकि अतिक्रमण और तोड़फोड़ को रोका जा सके। इसके अतिरिक्त, इन स्थलों के जीर्णोद्धार और रखरखाव के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन आवंटित किए जाने चाहिए।
यदि समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो दमोह जिले की यह समृद्ध ऐतिहासिक विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए केवल धुंधली यादों और तस्वीरों में ही सिमट कर रह जाएगी। यह न केवल इस क्षेत्र के लिए एक अपूरणीय क्षति होगी, बल्कि हमारी राष्ट्रीय धरोहर के एक महत्वपूर्ण हिस्से का भी नुकसान होगा। इसलिए, यह अत्यंत आवश्यक है कि सभी संबंधित पक्ष मिलकर इन प्राचीन धरोहरों को खंडहर में तब्दील होने से बचाने के लिए सक्रिय रूप से कार्य करें।
