दमोह के हिंडौरिया में एक आठ वर्षीय मासूम बच्ची के साथ हुए इस जघन्य अपराध की खबर अत्यंत पीड़ादायक है। यह घटना न केवल एक व्यक्ति के घिनौने कृत्य को दर्शाती है, बल्कि समाज में व्याप्त असुरक्षा और संवेदनहीनता की ओर भी इशारा करती है। एक बच्ची, जो खेलने-कूदने और अपने बचपन का आनंद लेने की उम्र में थी, उसे इस भयावह trauma से गुज़रना पड़ा, जिसका असर उसके पूरे जीवन पर पड़ सकता है।
आरोपी, जो कि पीड़िता का पड़ोसी चाचा बताया जा रहा है, ने विश्वास का घोर उल्लंघन किया है। पारिवारिक और पड़ोस के रिश्तों में विश्वास और सुरक्षा की भावना निहित होती है, और इस घटना ने उस नींव को हिला दिया है। यह सोचने में भी भयानक लगता है कि एक ऐसा व्यक्ति जिसे बच्ची जानती और शायद विश्वास करती होगी, उसने इस तरह का घिनौना कृत्य किया।
स्थानीय लोगों की मासूम बच्ची की चीख सुनकर तुरंत प्रतिक्रिया देना और मदद के लिए दौड़ना मानवता की उम्मीद जगाता है। उनकी तत्परता ने यह दिखाया कि समुदाय ऐसे अपराधों को बर्दाश्त नहीं करेगा और पीड़ित के साथ खड़ा है।
दमोह पुलिस, विशेष रूप से हिंडौरिया थाना प्रभारी और उनकी टीम, की त्वरित कार्रवाई सराहनीय है। घटना की जानकारी मिलते ही तत्परता से आरोपी को पकड़ना और उसे कानून के शिकंजे में लाना यह दर्शाता है कि पुलिस ऐसे मामलों को कितनी गंभीरता से लेती है। पुलिस अधीक्षक महोदय कीर्ति सोमवर्ती दमोह के निर्देशन, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक संदीप मिश्रा और एसडीओ पथरिया रघु केसरी के मार्गदर्शन में यह सफलता मिली है, जो कानून व्यवस्था बनाए रखने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
आरोपी हल्ले पिता लच्छू अहिरवाल के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 65(2) और 127(2) के साथ-साथ पॉक्सो एक्ट की धारा 34 के तहत मामला दर्ज किया गया है। इन धाराओं के तहत दुष्कर्म और बच्चों के यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर अपराधों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है। माननीय न्यायालय द्वारा आरोपी को जेल भेजना यह सुनिश्चित करता है कि वह आगे कोई अपराध न कर सके और उसे उसके कुकर्मों की सजा मिले।
यह घटना हमें बाल यौन शोषण के गंभीर मुद्दे पर सोचने के लिए मजबूर करती है। समाज के हर वर्ग को इस खतरे के प्रति जागरूक होने और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता है। माता-पिता, शिक्षक, समुदाय के सदस्य और कानून प्रवर्तन एजेंसियों सभी की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाएँ।
पीड़ित बच्ची और उसके परिवार को इस मुश्किल समय में हमारी सहानुभूति और समर्थन की आवश्यकता है। उन्हें न केवल चिकित्सा सहायता बल्कि मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से भी सहारा देना महत्वपूर्ण है ताकि वे इस trauma से उबर सकें। सरकार और गैर-सरकारी संगठनों को भी ऐसे पीड़ितों की मदद के लिए आगे आना चाहिए और उन्हें पुनर्वास और न्याय दिलाने में सहायता करनी चाहिए।
यह घटना एक चेतावनी है कि हमें अपने आसपास के बच्चों की सुरक्षा के प्रति हमेशा सतर्क रहना होगा और किसी भी संदिग्ध गतिविधि की सूचना तुरंत अधिकारियों को देनी चाहिए। बच्चों का भविष्य सुरक्षित करना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।
