**लोक सेवा केंद्र बना ‘तानाशाही का अड्डा’, आधार कार्ड बनवाने आई महिला से बदसलूकी — मीडिया टीम के पहुंचते ही बौखलाए ऑपरेटर**
**मऊगंज** — जिले के लोक सेवा केंद्र में इन दिनों आम जनता की समस्याओं का समाधान करने के बजाय उन्हें और ज़्यादा प्रताड़ित किया जा रहा है। यह हम नहीं, बल्कि खुद घटनास्थल पर मौजूद लोगों और सीसीटीवी कैमरों की आँखें कह रही हैं। आधार कार्ड बनवाने आई एक महिला को बीते कई दिनों से लगातार चक्कर लगवाए जा रहे थे। जब समस्या हल नहीं हुई, तब मीडिया की टीम ने स्वयं मौके पर पहुंचकर वस्तुस्थिति जानने की कोशिश की — और वहां जो हुआ, उसने लोकतंत्र में जनसेवा के पूरे सिस्टम पर सवालिया निशान लगा दिया। मीडिया की टीम जैसे ही लोक सेवा केंद्र पहुंची, वहां के आधार ऑपरेटर की बौखलाहट देखते ही बन रही थी। ऐसा लगा मानो कोई कलेक्टर या बड़ा प्रशासनिक अधिकारी खुद जांच के घेरे में आ गया हो। ऑपरेटर का व्यवहार न सिर्फ असभ्य था, बल्कि पत्रकारों और आम नागरिकों के साथ की गई फटकार और धमकियों ने इस बात को और पुख्ता कर दिया कि शायद इन पदों पर बैठे कुछ लोग खुद को कानून से ऊपर समझ बैठे हैं। **दीपक गुप्ता**, जो कि इस मुद्दे को उजागर करने पहुंचे थे, ने जब महिला के कागज़ात सही होने के बावजूद आधार कार्ड न बनाए जाने पर आपत्ति जताई, तो ऑपरेटर का जो ‘सरकारी रौब’ बाहर आया, वह आम आदमी को अपमानित करने के लिए काफी था। उसके शब्दों और व्यवहार से यह प्रतीत हो रहा था कि वह खुद को किसी बड़े अधिकारी से कम नहीं समझता। सवाल यह है कि जब एक मीडिया प्रतिनिधि के साथ इस तरह की बदसलूकी की जाती है, तो आम नागरिकों के साथ किस तरह का सलूक होता होगा? लोक सेवा केंद्र, जहां आम आदमी उम्मीद लेकर जाता है कि उसकी समस्याओं का समाधान होगा, आज खुद एक नया ‘संस्थान’ बन गया है — अहंकार, लापरवाही और दुर्व्यवहार का। यदि इस केंद्र में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज सार्वजनिक कर दी जाए तो सारा सच सामने आ जाएगा कि किस तरह से जनसेवा की आड़ में जनता को ही धमकाया और अपमानित किया जा रहा है। यह कोई पहली घटना नहीं है, लेकिन यदि इस बार भी प्रशासन ने आंख मूंद ली, तो यह व्यवस्था उन चंद लोगों के हाथों पूरी तरह गिरवी हो जाएगी, जो अपने कुर्सी को सत्ता का प्रतीक मान बैठे हैं। **मऊगंज प्रशासन से अपेक्षा की जाती है कि वे इस मामले को गंभीरता से लें, जांच करें और ऐसे तानाशाही रवैये पर कठोर कार्रवाई करें।** जनता का धैर्य अब जवाब देने लगा है। अगर अब भी कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाले समय में आम जन और मीडिया को मिलकर लोकतंत्र के इन ‘छिपे हुए अत्याचारियों’ को उजागर करना ही पड़ेगा।