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दमोह जिले के सागर नाका क्षेत्र में कृषि उपज मंडी के पास स्थित शराब दुकान के खिलाफ स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों का विरोध लगातार बढ़ रहा है।

दमोह जिले के सागर नाका क्षेत्र में कृषि उपज मंडी के पास स्थित शराब दुकान के खिलाफ स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों का विरोध लगातार बढ़ रहा है।

इस विरोध प्रदर्शन का मुख्य नेतृत्व भगवती मानव कल्याण संगठन कर रहा है, जिसने मुख्यमंत्री और कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर इस दुकान को हटाने की मांग की है। यह मुद्दा न केवल स्थानीय निवासियों के लिए एक सामाजिक समस्या बन गया है, बल्कि इसके व्यापक आर्थिक और सुरक्षा संबंधी निहितार्थ भी हैं।
विरोध का कारण और प्रभाव:
* सुरक्षा और सामाजिक माहौल: शराब दुकान का मुख्य सड़क पर और कृषि उपज मंडी के बिल्कुल पास होना एक गंभीर चिंता का विषय है। यह मार्ग रोज़ाना हज़ारों महिलाओं, स्कूली बच्चों और किसानों द्वारा उपयोग किया जाता है। शराब के सेवन से उत्पन्न होने वाले झगड़े, छेड़छाड़ और अन्य असामाजिक गतिविधियों का डर इन लोगों में व्याप्त है। इसका सीधा असर बच्चों के मानसिक विकास और महिलाओं की सुरक्षा पर पड़ता है, जिससे वे असुरक्षित महसूस करती हैं। उदाहरण के लिए, शाम के समय जब किसान मंडी से लौटते हैं या महिलाएं बाज़ार जाती हैं, तो उन्हें अक्सर नशे में धुत व्यक्तियों का सामना करना पड़ता है, जिससे भय का माहौल बनता है।
* किसानों पर नकारात्मक प्रभाव: कृषि उपज मंडी किसानों के लिए अपनी उपज बेचने का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। मंडी के पास शराब दुकान होने से किसानों के बीच शराबखोरी बढ़ सकती है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और पारिवारिक जीवन पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। कई बार, अपनी उपज बेचने के बाद, किसान उस पैसे का एक बड़ा हिस्सा शराब पर खर्च कर देते हैं, जिससे उनके परिवार को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। इससे कृषि उत्पादकता पर भी अप्रत्यक्ष रूप से असर पड़ सकता है, क्योंकि किसान नशे के कारण अपने काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं।
* पहले के आदेशों की अनदेखी: भगवती मानव कल्याण संगठन का आरोप है कि इस दुकान को पहले भी हटाने के आदेश दिए गए थे, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह सरकारी आदेशों की अवहेलना और स्थानीय प्रशासन की ढिलाई को दर्शाता है। यह स्थिति जनता के विश्वास को कमजोर करती है और उन्हें यह महसूस कराती है कि उनकी आवाज़ नहीं सुनी जा रही है।
* कानूनी और नैतिक आयाम: भारत में, विशेष रूप से ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में, शराब की बिक्री और खपत के सामाजिक और नैतिक आयाम काफी संवेदनशील हैं। सरकार द्वारा राजस्व प्राप्ति के लिए शराब की दुकानों को अनुमति दी जाती है, लेकिन इसके सामाजिक दुष्परिणाम अक्सर इस राजस्व से कहीं अधिक भारी पड़ते हैं। यह विरोध प्रदर्शन इस बात पर प्रकाश डालता है कि विकास और राजस्व संग्रह के बीच एक संतुलन होना चाहिए, जिसमें नागरिकों की सुरक्षा और कल्याण को प्राथमिकता दी जाए।
आगे की राह:
जनता की स्पष्ट मांग है कि “मंडी में नहीं, शराब दुकान कहीं और चलाओ।” यह मांग तर्कसंगत है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। प्रशासन को न केवल दुकान को हटाना चाहिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में ऐसी संवेदनशील जगहों पर शराब की दुकानें न खोली जाएं। इसके लिए एक स्पष्ट नीति और सख्त निगरानी की आवश्यकता है। इसके अलावा, शराब के सेवन से होने वाले नुकसान के बारे में जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां शिक्षा और जागरूकता का स्तर कम हो सकता है। यह एक स्थानीय मुद्दा है जो ग्रामीण भारत में शराब की बढ़ती खपत और उसके सामाजिक-आर्थिक प्रभावों की एक बड़ी तस्वीर प्रस्तुत करता है, जहां अक्सर सीमित स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक समर्थन प्रणालियों के कारण इन प्रभावों का सामना करना मुश्किल हो जाता है। यह विरोध दमोह के नागरिकों की सामूहिक शक्ति का एक उदाहरण है, जो अपने समुदाय के बेहतर भविष्य के लिए एकजुट हो रहे हैं।

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