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दमोह सब्जी मंडी में लहसुन किसानों से आडतियों द्वारा की जा रही अवैध वसूली की यह घटना वास्तव में चिंताजनक है और कृषि समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर करती है।

दमोह सब्जी मंडी में लहसुन किसानों से आडतियों द्वारा की जा रही अवैध वसूली की यह घटना वास्तव में चिंताजनक है और कृषि समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर करती है। यह सिर्फ कुछ किसानों या एक मंडी की समस्या नहीं है, बल्कि यह व्यवस्था में व्याप्त उन कमियों की ओर इशारा करता है जिनका फायदा उठाकर कुछ व्यापारी किसानों का शोषण करते हैं।
अवैधानिक रूप से 6% राशि की वसूली, जिसे ‘कमीशन’ या ‘सेवा शुल्क’ के नाम पर वसूला जाता होगा, किसानों की आय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हड़प लेती है। कल्पना कीजिए, यदि एक किसान एक बोरी लहसुन ₹2000 में बेचता है, तो इस अवैध वसूली के कारण उसे ₹120 का नुकसान होता है। यदि कोई किसान अपनी फसल की कई बोरियाँ बेचता है, तो यह नुकसान हजारों रुपये तक पहुँच सकता है। यह राशि किसानों के लिए बीज, खाद और अन्य कृषि आदानों में निवेश करने या अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है। इस तरह की जबरन वसूली किसानों को आर्थिक रूप से कमजोर करती है और उन्हें कर्ज के जाल में फँसा सकती है।
इसी प्रकार, प्रति बोरी एक से डेढ़ किलो लहसुन की अतिरिक्त वसूली भी एक प्रकार का प्रत्यक्ष नुकसान है। यह न केवल उनकी उपज की मात्रा को कम करता है बल्कि उनकी मेहनत और लागत को भी कम आंकता है। यदि एक किसान 50 बोरियाँ लहसुन बेचता है, तो उसे लगभग 50 से 75 किलो लहसुन अतिरिक्त देना पड़ता है, जिसका बाजार मूल्य काफी अधिक हो सकता है। यह एक तरह की चोरी है जिसे मंडी के नियमों और नैतिकता के विरुद्ध माना जाना चाहिए।
मंडी में सेटों पर व्यापारियों का कब्जा भी एक बड़ी समस्या है जो प्रतिस्पर्धा को बाधित करती है और नए व्यापारियों या छोटे किसानों के लिए अवसर सीमित करती है। यदि कुछ व्यापारियों का मंडी के बुनियादी ढांचे पर एकाधिकार होगा, तो वे अपनी मनमानी शर्तें थोप सकते हैं और किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाएगा। यह स्वस्थ व्यापार प्रथाओं के खिलाफ है और मंडी के लोकतांत्रिक स्वरूप को कमजोर करता है।
किसान संगठनों के पदाधिकारियों द्वारा कलेक्टर साहब को पत्र सौंपना एक महत्वपूर्ण और सराहनीय कदम है। यह दिखाता है कि किसान अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं और अन्याय के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठा रहे हैं। कलेक्टर साहब द्वारा मंडी प्रशासक को कार्रवाई करने के निर्देश देना उम्मीद की एक किरण जगाता है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि मंडी प्रशासन इस मामले में कितनी तत्परता और निष्पक्षता से कार्रवाई करता है। इसमें शामिल व्यापारियों की पहचान करना, अवैध वसूली को रोकना और कब्जा किए गए सेटों को खाली कराना आवश्यक होगा ताकि मंडी में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनी रहे।
यह घटना अन्य मंडियों के लिए भी एक सबक है कि किसानों के हितों की रक्षा के लिए मजबूत नियामक तंत्र और प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता है। सरकार और मंडी बोर्ड को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिले और उन्हें किसी भी प्रकार के शोषण का शिकार न होना पड़े। इसके लिए नियमित निरीक्षण, किसानों के लिए शिकायत निवारण प्रणाली और दोषी व्यापारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई आवश्यक है।
श्री हेमंत पटेल, श्री पप्पू पटेल और श्री हरिश्चंद्र पटेल जैसे किसान नेताओं का सक्रिय योगदान इस लड़ाई को महत्वपूर्ण बनाता है। उनका साहस और किसानों के प्रति समर्पण सराहनीय है। उम्मीद है कि उनके प्रयासों से दमोह के किसानों को न्याय मिलेगा और अन्य स्थानों के किसानों को भी प्रेरणा मिलेगी। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिस पर न केवल स्थानीय प्रशासन बल्कि राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि किसानों के हितों की रक्षा की जा सके और कृषि को एक टिकाऊ और लाभकारी व्यवसाय बनाया जा सके।

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